जीवन में कई ऐसे मौके आते हैं जब आप अपने से ये प्रश्न पूछते की जीवन आखिर है क्या ?
सब कुछ आपके विपरीत होता है. आप कुछ नहीं कर पाते.
जाल में फंसे एक चूहे की तरह जो फंसने के बाद काफी उछल कूद करता है. वह रास्ते की तलाश करता है किसी तरह बाहर निकले . और फिर थक हार के चुप करके बैठ जाता इस इंतज़ार में की या तो उसे अब मर जाना है या फिर शिकारी उसे जिंदा बाहर एक नई जगह छोड़ देगा.
कुछ बच भी जाते हैं. और फिर ज़िदगी की एक नई शुरुआत होती है. कुछ सीखते भी है. दोबारा वह ग़लती न करें की जाल में फंसे. फिर जिंदगी चलती है. एक नये संघर्ष की ओर. बस ऐसे ही चलता है. यही तो जीवन है. जीवन कुछ और थोड़े न है. एक निरंतर संघर्ष.
किसी ने मुझसे पुछा था. जीवन का लक्ष्य क्या है. मैंने जवाब दिया. आप के जन्म के बाद से ही आप का लक्ष्य मृत्यु ही तो है. आप उसके तरफ निरंतर बढ़ते हैं. जन्म और मृत्यु के बीच में का समय ही जीवन है शायद.
खुशियाँ, गम साथ साथ ही चलते हैं. हम अक्सर इस बीच ख़ुशी को पैसे से तौलते हैं. लेकिन पैसा एक कारक तो है, मंजिल नहीं. जब उतार चदाव की बात आती है तो भी पैसा के कसौटी पे ही तोला जात है. मैं इसको गलत मानता हूँ. इंसान को जीवन और मृत्यु के बीच सिफ तीन चीजों की दरकार है शायद.
प्यार करने वाला एक. एक काम जिसमें मन लगे, और तीसरा स्वास्थ्य. इसमें से अगर एक की भी कमी है तो अवसाद घेर लेगा ये तो सत्य है.. बाकी सब टेक्निकल है.
इस संघर्ष में आप चलते रहिये.. चरैती चरैती.. हम भी आपके साथ ही तो हैं.